Saturday, August 21, 2010

किस काम के सपने जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो !

किस काम के “कपडे” जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो

.. Story behind the word “KAPDE”…. I wrote these lines when i was making my Son Aayush ready for going to office…and he was kicking his T-shirt..hard and away…then a whole poem came up….later in the evening my husband…said…i shud change “KAPDE” to something better…i dint wanted to as I will loose the Feel…but for pure reading pleasure i changed it to….”SAPNE”… SO HERE IT IS FOR YOU…….


किस काम के सपने जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो,

धरती पर बाड़ और सूखे का साया हो बदल फटना यदा कदा की नहीं रोज़ का नज़ारा हो,
जंगल की आग पे काबू पाना नामुमकिन हो रहा हो,
किस काम के सपने जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो,

मेक्सिको की खाड़ी  हो या चीन का तेल रिसाव,
समुन्द्र के तलव में तेल का मलबा हो,
जहाँ प्रदूषण का खतरा नहीं था वहां  आज जीवन ही खतरे में हो,
इस दुनिया की नीव जिसपर टिकी थी वोह नीव ही खतरे में हो,

किस काम के सपने जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो,

इस धरती पर जब भूकंप और ज्वालामुखी आम बात हो,
त्सुनामी जैसा अनसुना शब्द अब बच्चों  की किताबो में हो,
सूरज का प्रकोप  जब बीमारियाँ ला रहा हो,
जानवर तो दुर्लभ हो ही रहे थे,
इन्स्सन की अब बारी हो,
नदियों का सूख जाना अब डरावना सपना नहीं आने वाले कल की सच्चाई हो,
आने वाली पीढ़ी के लिए धरती का ठिकाना न हो,
किस काम के सपने जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो,

किस काम के सपने जब इंसान का अस्तित्व ही खतरे में हो,

नेहा श्रीवास्तव-कुल्श्रेस्थ
भारतीय
घाना
२०/०८/२०१० 

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