Saturday, August 28, 2010

इतना सा फर्क है !


इतना सा फर्क है !
जीवन के मझधार में ,
सोच के ताना बना में,
धरा प्रवाह बहते  विचारों में ,
उधेड़ बुन है इतनी, विचलित है मेरा मन |
***
तुम्हारे ख्यालों में तुम्हारे एहसास में,
दूर बैठी मैं निहार्थी हूँ आसमान को,
नीला निराकार  आकाश का नीला रंग,
गहरा है मेरे विचारों की तरह,
ख्यालों के अंत में खो जाती हूँ नींद  के आगोश में |
***
तुम्हारे साथ ही सोती हूँ उठती हूँ तुम्हारे साथ,
तुम नहीं होते पास मेरे, बस  इतना सा फर्क है |
***
आँख खुलते ही तुम्हारा मासूम मुस्कुराता चेहरा तो होता है,
पर उन्हें स्पर्श करने पर छूने का एहसास नहीं हो पाता , बस इतना सा फर्क है |
***
आंसू तो बहते हैं आँखों से, सर भी तुम्हारे सीने पर,
होने का एहसास तो है, पर मेरे सर को सहलाते तुम्हारे हाथो का,
स्पर्श महसूस नहीं होता, बस इतना सा फर्क है |
तुम हो कर भी नहीं हो, बस इतना सा फर्क है |
***
मेरे खोये चेहरे पर हंसी लाने की तुम्हारी चेष्ठा तो है ,
पर उस हंसी हो तुम्हारी नज़रें देख न पाएंगी,
बस इतना सा फर्क है |

इतना सा फर्क है ....

नेहा श्रीवास्तव-कुल्श्रेस्थ
भारतीय
घाना

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