Saturday, August 28, 2010
-----तुम------
-----तुम------
रंगों की बहार का
बसंत की फुहार का
शांत माहोल में संगीत का
मधुर आवाज़ के गाने का
सुरों में झूमने का
सड़क पे इतराने का
लहरा के चलने का
मदहोशी में खोने का
सपनो में उड़ने का
यह मेरा मन है
जो बेकाबू हो रहा है |
***
फूलों की सी सुन्दरता का
भौरों की सी चंचलता का
बच्चों की सी निश्चलता का
नदी की कल्कलाहट का
चुडियों की छह-चाहट का
सतरंगी इन्द्रधनुष की रंगत का
पहली बारिश की खुशबू का
अँधेरे में दिख रहे तारों का
उगते सूरज की लालिमा का
एहसास जितना मधुर है
तुम्हारे ख्यालों में मेरे दिल को
वही सुकून मिलता है |
***
भरी भीड़ में तुम्हारे आते ही
शोर थम सा जाता है
तुम सामने आते हो तो
मन विचलित हो जाता है, पर तब भी
इस अशांत दिल को ठंडक तभी मिलती है
जब नज़र तुमसे टकराती है
सारी कायनात थम जाती है
तुम्हारे करीब आते ही
रोम-रोम सिहर जाता है
भावनाओं के इस दीवाने सैलाब को
नाम भी दे तो क्या दे ?
***
बस यही आरज़ू है मन में
तुम आकर थाम लो हमें
कसके गले लगा कर
उफंठे तूफ़ान को बेकाबू होने से रोक लो
मेरे हाथों की कंपकपी को
अपने हाथों से संभल लो
अधखुले अधरों की सिहरन को
अपने में समेत लो
प्यार मुझे इतना करो
तुमसे दूर होने का सारा एहसास मिटा दो
तुम मेरे हर रूप को सजा -सँवार के निखर दो |
नेहा श्रीवास्तव-कुल्श्रेस्थ
भारतीय
घाना
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment